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क्या लिखू मैं अपने विद्यालय के बारे मैं ?आज अगर मैं इस काबिल हूँ की मैं कुछ लिख पा रहा हूँ तो अपने विद्यालय के उन प्रतिवाहसली अध्यापकों के करण जिन्होंने अपने बच्चों जैसा प्यार हर छात्र को दिया और उन्हें शिक्षित करने मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ी।अगर किसी भी कारणवश किसी भी छात्र/छात्रा के अंको मैं कोई भी गिरावट आती थी तो शिक्षक उस नाकामी की ज़िम्मेदारी खुद पे ले लेते थे।मुझे तो इस बात का गुरुर है की मेरे विद्यालय के सारे शिक्षकगण ने कभी भी किसी भी छात्र को किसी भी तरह से निराश नहीं होने दिया।
अगर मुझे संस्कार मेरे परिवार से मिला तो उसे अपने जीवन के हर कठिनाइयों मैं अनुशासित ढंग से इस्तमाल करने की प्रेणा अपने विद्यालय से मिली। बहुत सारे विद्यालय मेरे विद्यालय के आसपास है क्रिन्तु जिस अनुशासित ढंग से मेरा विद्यालय संचालित होता था वो अपने आप मैं ही मिसाल था। मेरे विद्यालय के निदेशक के लिए हम सारे छात्र उनके अपने बच्चों जैसे थे। निर्देशक मोहदय गुस्से मैं तो बहुत कुछ बोल देते थे पर हर बार वो हमारा दिल जीत लेते थे और हमें बहुत सारि ऊर्जा से भर देते थे। आज मुझे गर्व होता है की मैं एक ऐसे विद्यालय का छात्र हूँ जो अपने अनुशासन ,पढ़ाई और मानवता के लिये जाना जाता था। ज़िनदगी के किसी भी रास्ते पे मैं अपने शिक्षकों दुवारा दी गईं सलाह कभी भी नहीं भूल सकता।

मेरे विद्यालय का नाम था ज्ञान ज्योति रेसिडेंशियल पुब्लिक स्कॉल ।नाम कि तरह ही यहाँ आने वाला हर एक छात्र ज्ञान लेके ही वापस जाता था।



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